आई नोट , भाग 14
अध्याय-2
लक्ष्य और मकसद
भाग-7
★★★
आशीष अपनी नई काले रंग की लग्जरी कार पर जिसकी छत भी नहीं थी, से शहर के डिस्को क्लब की ओर जा रहा था। उसका एक हाथ स्टेरिंग पर था जबकि एक हाथ बाहर की तरफ। चेहरे पर खामोशी थी। मगर वह बीच-बीच में उन्हें खुशमिजाज करता हुआ अपने चेहरे के अन्दाज़ को बदल जरूर रहा था।
उसने एक डिस्को के सामने आकर कार रोकी और डिस्को की तरफ देखते हुए मन में कहा “बदलाव.. स्टीफन कि यह बात बुरी नहीं थी... चलो खुद में बदलाव किया जाए।”
वह गाड़ी से उतरा और डिस्को की तरफ जाने लगा। अगले ही पल वह डिस्को के अन्दर था। वहांँ उसने एक के बाद एक कई सारी ड्रिंक्स ली। ड्रिंक्स लेने के बाद जब उसने अपना आखिरी गिलास टेबल पर रखा तो मन में बोला “नशा करके अपने गम को बुलाया जाए...।”
वह अपनी जगह से खड़ा हुआ और डांस फ्लोर पर आकर डांस करने लगा। उसका डांस करने का तरीका स्टाइलिश था। ऐसे लग रहा था जैसे वह इस में माहिर हो।
मगर डांस करते करते अचानक उसके आसपास के दृश्य धुन्धले से होने लगे, जब यह सब होने लगा तो उसने अपने सर को झटका और ऊपर की तरफ करते हुए मन में कहा “मगर क्या मैं खुद को बदल पाऊंँगा। माना कि मैं जिन्दगी को एक कहानी के तौर पर देख रहा हूंँ, जिसमें मेरा रोल एक विलन का है, मगर असल मायने में जिन्दगी कहानी नहीं है। कहानी में अगर हमें कोई चीज पसन्द नहीं आती तो हम पीछे जाकर उसे सही कर सकते हैं, मगर जिन्दगी में जो हो गया उसे कभी बदला नहीं जा सकता। कहानी की सच्चाई में फेरबदल किया जा सकता है, मगर जिन्दगी की सच्चाई में कोई फेरबदल नहीं हो सकता।” इतना कहकर उसने अपने सर को नीचे कर लिया। उसके डांस स्टेप धीरे-धीरे स्लो हो रहे थे। सर को नीचे करते हुए उसने कहा “बदलाव, यह साला म****क बदलाव भी तो इतना आसान नहीं।”
उसने दोबारा अपने सर को झटका और खुद को सही किया। जैसे ही उसकी आंँखों के आगे आने वाले धुंँधलेपन वाले दृश्य सही हुए उसे अपने सामने एक लड़की नजर आई। तकरीबन 24 से 25 साल की लड़की जिसने लाल रंग की ड्रेस पहन रखी थी। हल्के गोरे रंग वाली लड़की उसे आकर्षित कर रही थी।
वह आशीष से ठीक कुछ दूर अकेले ही डांस कर रही थी। आशीष ने अपनी आंँखें झपकाई, वह अपने दृश्यों को और ज्यादा साफ करने की कोशिश कर रहा था।
उसने अपने कदमों को धीरे धीरे लड़की की तरफ बढ़ाया, एक ऐसे अन्दाज में जहांँ वह लड़खा रहा था मगर उसका लडखडा़ना दिख नहीं रहा था। लड़की की तरफ जाते हुए वह अपने मन में बोला “अगर मैं अपनी पसन्द ही बदल दूंँ तो क्या, तो क्या मेरा बदलाव सफल हो जाएगा? क्या मैं बदल जाऊंँगा? क्या मेरी शख्सियत एक अलग शख्सियत बन जाएगी?” वह लड़की के पास पहुंँचा और उसने धीरे से अपने हाथ को आगे बढ़ाते हुए उसे लड़की के बालों में फेरा।
लड़की यह देखकर चिढ़ गई और उसने जोर से थप्पड़ आशीष को दे मारा। थप्पड़ पड़ते ही आशीष का चेहरा दूसरी तरफ हो गया। वह नीचे फर्श की तरफ देखने लगा था। नीचे फर्श की तरफ देखते हुए वह अपने मन में बोला “मगर यह दुनिया, मगर यह दुनिया उसे स्वीकार करेगी तो ना, अगर इस दुनिया को मेरी नई शख्सियत पसन्द आएगी तब जाकर मुझमें बदलाव होगा ना।”
लड़की ने अपनी जगह बदली और वहांँ से दूर चली गई। आशीष कुछ देर तक नीचे देखता रहा। इसके बाद उसने ऊपर की तरफ चेहरा किया और दोबारा डांस करने लगा। “एक इन्सान अगर अच्छे से अपनी जिन्दगी जीने की कोशिश करता है तो यह दुनिया उसके बीच दरार बनकर खड़ी हो जाती है। एक ऐसी दरार जो उसकी नई और उसकी पुरानी शख्सियत के बीच गहरी खाई बना देती है। फिर मामला एक बार दोबारा लक्ष्य और मकसद पर आकर खड़ा हो जाता है।” अब वह अपनी मस्ती में चूर डांस कर रहा था। “इन्सान अपनी नई शख्सियत और अपने लक्ष्य तथा मकसद के बीच पूरी तरह से उलझ जाता है। नई शख्सियत उसे हासिल नहीं होती और पुरानी शख्शियत अपने लक्ष्य और मकसद को नहीं छोड़ती।”
डांस करते करते उसे पता नहीं क्या हुआ, उसने डांस करना छोड़ा और वही क्लब के बाथरूम की ओर चला गया। बाथरूम में जाते ही वह सिंक के पास गया और एक के बाद एक पानी के छींटे अपने चेहरे पर मारे। तकरीबन चार से पांँच बार पानी के छींटे मारने के बाद वह अपने दोनों हाथों को सिंक पर रखकर रोने लगा।
रोते-रोते वह बोला “मुझे समझ में नहीं आ रहा मैं क्या करूंँ... मैं... मैं कुछ भी नहीं समझ में पा रहा हूंँ।” वह घुमा और पीठ के बल वही सिंक के पास बैठ गया। इससे पहले उसने अपनी बात बोलते हुए कही थी, मगर अबकी बार उसने अपने मन में कहा “कोई इन्सान जिस कंडीशन से गुजरता है वह उसे अन्दर से कितना तड़पाती है इसे कोई नहीं समझ सकता। इसे सिर्फ वही इन्सान समझ सकता है जिसके साथ यह कंडीशन गुजरती है।” उसने अपने आंँसू साफ किए “हांँ, समाज के लिए यह चीज एक्सेप्टेबल नहीं है। क्यों, क्योंकि ऐसा काफी कम लोगों के साथ होता है। समाज में हर कोई ऐसी फीलिंग को फिल नहीं करता। वो खुश हैं। उनके पास जो है वह उसी में खुश हैं। कोई लक्ष्य नहीं... कोई मकसद नहीं... जब यह सब नहीं तो कोई फीलिंग नहीं... और फीलिंग नहीं तो कोई दर्द नहीं। जबकि मैं... मैं... मेरे पास मेरा लक्ष्य और मकसद है और अपने इस लक्ष्य और मकसद के साथ... मुझे नहीं पता मुझे अब आगे क्या करना है। मैं यह भी नहीं जानता मैं अब क्या कहूँ। आई वांट... काश .. काश मैं किसी गहरी नींद में सो जाऊँ।” उसने आँखे बन्द की और अपने सर को पीछे की तरफ लगा लिया। “यह सुकून देती है।”
तभी बाथरुम में कोई आया और आशीष का ध्यान टूट गया। बाथरूम में आने वाला शख्स कोई 23-24 साल का लड़का था। वो आशीष को घूरता हुआ उसके सामने से निकल गया। जबकि आशीष उसे देखता रहा।
आशीष ने गहरी सांँस ली और अपनी जगह से खड़े होते हुए वापिस मुंँह धोया।
रात के तकरीबन 11:00 बज रहे थे। आशीष अपने गेस्ट हॉउस में था। छत के ऊपर। छत किनारे पर खड़ा हुआ, जहांँ उसके आधे जूते बाहर की ओर थे और आधे अन्दर। उसके गेस्ट हॉउस की छत इस प्रकार से थी कि वहांँ किसी भी तरह की रेलिंग नहीं लगी हुई थी। मोर्डन डिजाइन की छत होने की वजह से उसे बिना रोलिंग के ही रखा गया था।
आशीष ने अपने दोनों हाथों को 180 डिग्री के एंगल पर किया और अपने मन में कहा “हर एक जिन्दगी की एक शुरुआत और एक अन्त होता है। निराशा हताशा ये सब इस जिन्दगी के कुछ छोटे छोटे हिस्से होते हैं। इन्सान कमजोर होता है, कमजोर होने के बाद अन्दर से जूझता है, अपने दुःख दर्द को अन्दर ही अन्दर से ठीक करने की कोशिश करता है, और जब वो वहांँ हार जाता है तो उसका मन उसे... उसका मन उसे उसके जिन्दगी के अन्त पर लाकर खड़ा कर देता है। इन्सान का दिमाग ही है, जो सबसे ज्यादा इन्सान की जिन्दगी बर्बाद करता है। इन्सान का दिमाग ही उसका सबसे बड़ा दुश्मन है। जिन्दगी का अन्त, अगर आप किसी चीज को ठीक से हैंडल नहीं कर पा रहे हैं, तो अन्त ही इसका हल होता है। ठीक वैसे, जैसे कोई लेखक अपनी कहानी को सिर्फ इसलिए खत्म कर देता है क्योंकि उसे कहानी में क्या करना है कुछ ठीक से समझ नहीं आ पाता। लोगों को लगता है लेखक का कहानी लिखने का मन नहीं था, मगर वह कभी यह नहीं जान पाते कि लेखक को कहानी लिखते वक्त क्या फील हुआ था। कहीं ऐसा तो नहीं कि लेखक अन्दर से टूटा हुआ था, इतना ज्यादा की उसके शब्दों ने उसका साथ नहीं दिया। इस वजह से वह कहानी पूरा नहीं कर सका और उसने कहानी को बीच में छोड़ दिया। शायद नहीं, दुनिया ऐसा कभी नहीं समझेगी, दुनिया सिर्फ वही देखती हैं जो हम उसे दिखाते हैं। किसी इन्सान के दिमाग में क्या चल रहा है यह दुनिया को जानने को नहीं मिलता। अगर दुनिया को दिमाग में चल रही बातों का पता चले, तो शायद.. शायद तब जाकर उसे पता चले एक इन्सान आखिर में क्या है। एक इन्सान... एक इन्सान आखिर अपने दिमाग से कितना लड़ता है। एक इन्सान... एक इन्सान बस भावनाओं में रहने वाला एक कमजोर शख्स है, जिससे उसका दिमाग तिल तिल करके मारता है।”
उसने आंँखें बन्द की और धीरे-धीरे अपने कदमों को आगे की ओर करने लगा। खिसकाते हुए। तभी वह रुका और अपने मन ने कहा “मगर... मगर अन्त... क्या इससे किसी भी चीज का हल हो जाता है? एक कहानी को बीच में छोड़ने के बाद हम पीछे जो भी छोड़ कर जाते हैं, क्या वो लोगों को सन्तुष्टि दे पाता है? क्या जिन्दगी को इस तरह से बिना लक्ष्य और मकसद के खत्म कर देना... उसका अन्त कर देना.. क्या यह दुनिया को सन्तुष्टि दे पाएगा? सबसे बड़ी बात... क्या इससे खुद को भी संतुष्टि मिलेगीं।”
वह रुका और आंँखें खोलते हुए अपने मन में इस शब्द को दोहराया “लक्ष्य और मकसद....।” उसने ऊपर की तरफ देखा। आसमान तारों से भरा हुआ था। “लक्ष्य और मकसद किसी इन्सान की जिन्दगी में इन तारों की रोशनी की तरह है। इसमें लगातार उतार-चढ़ाव होता रहता है। ठीक वैसे जैसे तारों की रोशनी टिमटिमाते हुए कभी तेज होती है और फिर कभी कम। लक्ष्य और मकसद को हासिल करने की भाग दौड़ में कभी हमें सफलता मिलती है तो कभी असफलता। सफलता मिले तो हमें उस पर खुश होना चाहिए, हालांँकि खुशी सिर्फ खुद तक रखो तो बेहतर है। दुनिया उस खुशी को पागलपन का नाम दे सकती है और अगर असफलता मिले तो दोबारा से खुद को तैयार करो। तैयार इस चीज के लिए... कि अगर मुझे एक बार फिर से मौका मिला तो मैं किसी भी तरह की गलती नहीं करूंँगा। मैं उस मौके को एक सफल व्यक्ति की तरह पकड़ लूंँगा। अन्त करना किसी चीज का हल नहीं है। ठीक वैसे ही जैसे शख्सियत बदलने से भी कुछ हासिल नहीं होता।”
आशीष ने अपने कदमों को थोड़ा सा पीछे लिया, हाथ नीचे किए और छत के किनारे पर ही चलने लगा। छत के किनारे पर चलते हुए वह अपने मन में बोला “महान मोटिवेशनल लेखक ब्रायन ट्रेसी जो मानव क्षमता और व्यक्तिगत प्रभाव के विकास के क्षेत्र में अमेरिका के आदरणीय विशेषज्ञ हैं, उन्होंने अपनी किताब सबसे मुश्किल काम सबसे पहले के हिन्दी वर्जन में सफलता के बारे में लिखा है, इसे आत्मविश्वास और मजबूत इच्छाशक्ति से हासिल किया जा सकता है। हालांँकि उन्होंने यहांँ लक्ष्य और मकसद की बात नहीं की। जिसे मैं बार-बार दोहराता जा रहा हूंँ। लेकिन उन्होंने सफलता को जरूर परिभाषित किया है। सफलता इन्सान को एक दिन में हासिल नहीं होती। आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति सफलता में अपना योगदान देते हैं, मैं मानता भी हूंँ। मेरे एक अच्छे और सफल बिजनेसमैन होने के पीछे यही तो एक वजह है। मगर लक्ष्य और मकसद, इसकी भी अपनी भूमिका है। यह इन्सान को भटकाव से रोकती हैं।”
छत पर मोड़ आया और उसने घूम कर अपनी दिशा बदल ली। इससे पहले उसकी आंँखें खुली हुई थी। मगर इस बार उसने अपनी आंँखें दोबारा बन्द की और हाथों को फैलाकर सामने की ओर चलने लगा। “वैचारिक तौर पर इन्सान का खाली दिमाग, लक्ष्य और मकसद के रूप में इन्सान को एक आग देता है। एक ऐसी आग जिसके इस्तेमाल से सर्दी की सिरहन भरी रात में उसके पास बैठकर ठण्ड जैसी मुसीबतों से बचा जा सकता हैं। लक्ष्य और मकसद, यह हमें इस बात की चेतना देता है कि हमें कौन सी मुसीबत को किस तरह से देखना है। इसके बाद उससे निपटना कैसे हैं। लक्ष्य और मकसद की परिभाषा गुढ़ है। कम बुद्धिमान लोग शायद ही इसे समझ पाए, मगर जो इसे समझ पाता है यह उसके लिए एक उम्मीद की तरह काम करता है। एक ऐसी उम्मीद जो ना तो कभी खत्म होती है ना ही कभी कम।”
तभी उसने अपनी आंँखें खोली हाथों को नीचे किया और पलट कर अन्दर की तरफ जाने लगा। अन्दर वह सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था। पूरे गेस्ट हाउस में वह अकेला सीढ़ियों से नीचे उतरता हुआ बाहर आया और पार्क में खड़े होकर वहांँ की घास को देखने लगा।
घास को देखते हुए उसने दोबारा अपने मन में कहा “फिलहाल अब सब बातों का निचोड़ निकालकर फैसला करने की बारी है। फैसला इस चीज का कि मैं आगे आने वाले समय में क्या करूंँगा।” उसने अपने चेहरे पर एक आश्चर्यजनक मुस्कान दी “मेरा सलाहकार डिटेक्टिव कहता है कि मैं खुद को बदल कर एक अलग शख्सियत बन जाऊंँ। मगर यह सब आसान नहीं रहने वाला। मेरी आदतें। मेरी आदतें अब बदल नहीं सकती। दुनिया इसे स्वीकार नहीं करने वाली और अगर बदल गया तो शायद मैं खुद अपनी बदली हुई शख्सियत को स्वीकार नहीं करूंँगा। फिर दुनिया जानती है मेरी पसन्द लिमिटेड है। भगवान भी यह जानता है। तभी उसने ऐसी काफी कम चीजें बनाई है जो मुझे पसन्द आती है। ऐसे में अगर मुझे कुछ पसन्द आता है तो मैं उसे हासिल करने का ख्याल अपने दिमाग में ला सकता हूंँ। शायद नहीं भी ला सकता। इतना तो लाजमी है कि मैं अपनी पसन्द को नहीं छोडूंँगा। असफलता इन्सान का अन्त नहीं होता। आने वाले वक्त में अगर मुझे दोबारा मौका मिला और मुझे कोई चीज पसन्द आई, तो मैं उसे हासिल करके ही रहूँगा। बस अब थोड़े और बेहतर तरीकों का इस्तेमाल करूंँगा। एक अच्छा दिमागी खेल खेलूंँगा। जो गलती मैंने श्रेया के साथ कि वह गलती कभी दोबारा नहीं करूंँगा। शायद यही मेरी सीख है। शायद यही मेरा निचोड़ है। यही मेरी सच्चाई है। आशीष की सच्चाई। एक बेड कैरेक्टर की सच्चाई है। लक्ष्य और मकसद, मैं हमेशा इसे हासिल करने के लिए कोशिश करता रहूंँगा। तब तक... जब तक यह लक्ष्य और मकसद मेरे नहीं हो जाते।"
उसने अपने चेहरे पर प्रसन्न चित्त मुस्कान दी और घूम कर घर के अन्दर की ओर जाने लगा। अपने आखिरी दृश्यों में आशीष तारों के नीचे मौजूद गेस्ट हाउस में गया और उसके दरवाजे को यूंँ ही खुला रहने दिया। दरवाजे का खुला रहना उसका एक सन्देश था। एक सन्देश... जिसमें वह यह दिखाने की कोशिश कर रहा... कि उसके लिए उसके सभी रास्ते बन्द नहीं हुए। उसकी उम्मीद, उसकी उम्मीद उसके लक्ष्य और मकसद अभी भी उसके साथ हैं और हमेशा उसके साथ रहेंगे।
★★★
Karan
11-Dec-2021 05:50 PM
Rochak kahaani...
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Seema Priyadarshini sahay
07-Dec-2021 05:25 PM
बहुत ही रोचक।शरलॉक होल्म्स की रचनाओं जैसी लिखते हैं आप।
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